योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 425
From जैनकोष
जिनेन्द्रकथित आगम ही प्रमाण है -
परलोकविधौ शास्त्रं प्रमाणं प्रायश: परम् ।
यतोsत्रासन्नभव्यानामादर: परमस्तत: ।।४२५।।
अन्वय :- यत: परलोकविधौ शास्त्रं प्रायश: परं प्रमाणं (अस्ति) । तत: आसन्नभव्यानां अत्र (शास्त्रे) परम: आदर: (वर्तते) ।
सरलार्थ :- क्योंकि परलोक अर्थात् अगले एवं पिछले परभव के संबंध में शास्त्र अर्थात् सर्वज्ञ जिनेन्द्र भगवान से कथित आगम ही परम/सर्वोत्तम प्रमाण अर्थात् सत्य है । इसलिए निकट भव्य जीवों को शास्त्र में प्रतिपादित तत्त्व के सम्बन्ध में परम/सर्वोत्कृष्ट आदर वर्तता है ।