योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 427
From जैनकोष
प्रवृत्ति के अभाव से पुरुषार्थ की विभिन्नता -
अर्थकामाविधानेन तदभाव: परं नृणाम् ।
धर्माविधानतोsनर्थस्तदभावश्च जायते ।।४२७।।
अन्वय :- नृणां अर्थकाम-अविधानेन तदभाव: (जायते); परं धर्म-अविधानत: तदभाव: च अनर्थ: जायते ।
सरलार्थ :- अर्थ एवं कामपुरुषार्थ के साधनों में प्रवृत्ति न करने से किसी मनुष्य के जीवन में इन दोनों पुरुषार्थो का कदाचित् अभाव हो सकता है; परन्तु धर्मपुरुषार्थ के साधनों में प्रवृत्ति न करने से धर्मपुरुषार्थ का मात्र अभाव ही नहीं होता, धर्मपुरुषार्थ के साधनों में अनर्थ अर्थात् विपरीतता भी घटित होती है । अत: धर्मपुरुषार्थ के साधनों में प्रवृत्ति आवश्यक है ।