योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 426
From जैनकोष
शास्त्र संबंधी आदर का सहेतुक कथन -
उपदेशं विनाप्यङ्गी पटीयानर्थकामयो: ।
धर्मे तु न बिना शास्त्रादिति तत्रादरो हित: ।।४२६।।
अन्वय :- अङ्गी (संसारी जीव:) अर्थ-कामयो: उपदेशं विना अपि पटीयान् (भवति) । (परंतु) धर्मे तु विना शास्त्रादि न (प्रवर्तते) इति तत्र (शास्त्रे) आदर: हित: (भवति) ।
सरलार्थ :- चतुर्गतिरूप दु:खद संसार में स्थित मनुष्यादि सब जीव अर्थ और काम पुरुषार्थो के साधनों में उपदेश के बिना भी निपुण रहते हैं अर्थात् प्रवृत्ति करते ही हैं, परन्तु धर्म पुरुषार्थ के साधनों में शास्त्र के बिना अनादिकाल से कोई भी जीव प्रवृत्त नहीं होता; इसलिए शास्त्र-संबंधी आदर होना अतिशय हितकारक है ।