योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 429
From जैनकोष
शास्त्र की और विशेषता -
मायामयौषधं शास्त्रं शास्त्रं पुण्यनिबन्धनम् ।
चक्षु: सर्वगतं शास्त्रं शास्त्रं सर्वार्थसाधकम् ।।४२९।।
अन्वय :- शास्त्रं मायामयौषधं, शास्त्रं पुण्यनिबन्धनं, शास्त्रं सर्वगतं चक्षु: (च) शास्त्रं सर्वार्थसाधकं (भवति) ।
सरलार्थ :- क्रोध-मान-माया-लोभकषायरूपी रोग की सच्ची-सफल दवा शास्त्र है । सातिशय पुण्यपरिणाम एवं पुण्यकर्मबंध का सर्वोत्तम कारण शास्त्र है । जीवादि छह द्रव्य, सप्त तत्त्व अथवा नौ पदार्थो को सम्यक् रूप से दिखानेवाला/स्पष्ट करनेवाला शास्त्र ही चक्षु है और इस भव तथा परभव के सर्व प्रयोजनों को सिद्ध करनेवाला भी शास्त्र ही है ।