योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 430
From जैनकोष
शास्त्र-भक्ति रहित साधक का स्वरूप -
न भक्तिर्यस्य तत्रास्ति तस्य धर्म-क्रियाखिला ।
अन्धलोकक्रियातुल्या कर्मदोषादसत्फला ।।४३०।।
अन्वय :- यस्य तत्र (शास्त्रे) भक्ति: न अस्ति तस्य अखिला धर्म-क्रिया कर्मदोषात् अन्ध-लोक-क्रिया-तुल्या असत्फला (भवति) ।
सरलार्थ :- जिस साधक की आगम अर्थात् शास्त्र के प्रति भक्ति नहीं है अर्थात् अनादर है, उसकी सब धर्म-क्रियायें कर्म-दोष के कारण अंध-व्यक्ति की क्रिया के समान व्यर्थ तथा विपरीत फलदाता होती है ।