योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 432
From जैनकोष
शास्त्र के अध्ययन की पुन: प्रेरणा -
आगमे शाश्वती बुद्धिर्मुक्तिस्त्री-शंफली यत: ।
तत: सा यत्नत: कार्या भव्येन भवभीरुणा ।।४३२।।
अन्वय :- यत: आगमे (युक्ता) शाश्वती बुद्धि: मुक्तिस्त्री-शंफली (इव अस्ति) । तत: भवभीरूणा भव्येन यत्नत: सा (आगमे बुद्धि:) कार्या ।
सरलार्थ :- शास्त्र के अध्ययन-मनन-चिंतन आदि में निरंतर संलग्न बुद्धि मुक्तिरूपी स्त्री की प्राप्ति के लिये दूती के समान काम करती है; इसलिए संसार अर्थात् राग-द्वेषादि परिणामों से उत्पन्न दु:ख से भयभीत भव्य जीवों को अपनी बुद्धि को प्रयत्नपूर्वक शास्त्र में लगाना चाहिए ।