योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 465
From जैनकोष
कर्मरूप आवरण का नाश क्षणभर में -
धुनाति क्षणतो योगी कर्मावरणमात्मनि ।
मेघस्तोमिवादित्ये पवमानो महाबल: ।।४६५।।
अन्वय :- महाबल: पवमान: आदित्ये मेघस्तो ं क्षणत: धुनाति इव योगी आत्मनि कर्मावरणं (क्षणत: धुनाति) ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार सूर्य पर आये हुए मेघ समूह को तीव्र वेग/गति से चलनेवाला महाबलवान पवन क्षणभर में भगा देता है; उसीप्रकार आत्मा के ऊपर आये हुए कर्मो के आवरण को योगी क्षणभर में नष्ट कर देता है ।