योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 466
From जैनकोष
योग का लक्षण -
विविक्तात्म-परिज्ञानं योगात्संजायते यत: ।
स योगो योगिभिर्गीतो योगनिर्धूत-पातकै: ।।४६६।।
अन्वय :- यत: योगात् विविक्तात्म-परिज्ञानं संजायते (तत:) योगनिर्धूत-पातकै: योगिभि: स: योग: गीत: ।
सरलार्थ :- जिस योग से अर्थात् ध्यान से शुद्ध आत्मा का अत्यंत स्पष्ट ज्ञान होता है, उसे जिन्होंने योग के द्वारा पातक अर्थात् घातिकर्मो का नाश किया है - ऐसे योगियों ने योग कहा है ।