योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 476
From जैनकोष
ज्ञानी के भोग संसार के कारण नहीं -
शुद्धज्ञाने मनो नित्यं कार्येsन्यत्र विचेष्टते ।
यस्य तस्याग्रहाभावान् न भोगा भवहेतव: ।।४७६।।
अन्वय :- यस्य मन: नित्यं शुद्ध ज्ञाने वर्तते, अन्यत्र कार्ये विचेष्टते तस्य भोगा: आग्रह- अभावात् न भवहेतव: ।
सरलार्थ :- जिसका मन अर्थात् व्यक्त/प्रगट ज्ञान सदा शुद्ध ज्ञान में अर्थात् त्रिकाली निज शुद्ध आत्मा में रमा/संलग्न रहता है; अन्य किसी कार्य में जिसकी उपादेय बुद्धि से कोई प्रवृत्ति नहीं होती उसके पंचेंद्रियों के भोग आसक्ति के अभाव में संसार के कारण नहीं होते ।