योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 488
From जैनकोष
तत्त्वचिंतकों का अलौकिक ध्येय तत्त्व -
विकारा निर्विकारत्वं यत्र गच्छन्ति चिन्तिते ।
तत् तत्त्वं तत्त्वतश्चिन्त्यं चिन्तान्तर-निराशिभि: ।।४८८।।
अन्वय :- यत्र चिन्तिते विकारा: निर्विकारत्वं गच्छन्ति तत् तत्त्वं तत्त्वत: चिन्तान्तर- निराशिभि: चिन्त्यं (भवति) ।
सरलार्थ :- जिस (निज भगवान आत्मा) का चिन्तन/ध्यान करने पर विकार निर्विकारता को प्राप्त हो जाते हैं (वीतरागमय धर्म प्रगट हो जाता है), उस (चिन्तनयोग्य ध्येय) तत्त्व का अन्य चिन्ताओं से निरिच्छ पुरुषों को वास्तविक चिन्तन करना चाहिए ।