योगसार - जीव-अधिकार गाथा 34
From जैनकोष
श्रुतज्ञान से भी केवलज्ञान के समान आत्मबोध की प्राप्ति -
आत्मा स्वात्मविचारज्ञैर्नीरागीभूतचेतनै: ।
निरवद्यश्रुतेनापि केवलेनेव बुध्यते ।।३४ ।।
अन्वय :- स्व-आत्म-विचारज्ञै: नीरागीभूतचेतनै: निरवद्यश्रुतेन अपि आत्मा केवलेन इव बुध्यते ।
सरलार्थ :- निज आत्मा के विचार में निपुण रागरहित (साम्यभावरूप परिणत सम्यग्दृष्टि) जीव निर्दोष श्रुतज्ञान से भी आत्मा को केवलज्ञान के समान जानते हैं ।