योगसार - जीव-अधिकार गाथा 47
From जैनकोष
अणुमात्र राग भी पाप का बंधक -
यस्य रागोsणु मात्रेण विद्यतेsन्यत्र वस्तुनि ।
आत्मतत्त्व-परिज्ञानी बध्यते कलिलैरपि ।।४७।।
अन्वय :- यस्य अन्यत्र वस्तुनि अणुमात्रेण राग: विद्यते स: आत्मतत्त्व-परिज्ञानी अपि कलिलै: बध्यते ।
सरलार्थ :- जिसके परवस्तु में सूक्ष्म से सूक्ष्म भी राग विद्यमान है, वह जीव आत्मतत्त्व का ज्ञाता होने पर भी पाप कर्मो से बंधता है ।