योगसार - जीव-अधिकार गाथा 52
From जैनकोष
ध्येयरूप विविक्तात्मा/शुद्धात्मा का स्वरूप -
कर्म-नोकर्म-निर्मुक्तममूर्त जरामरम् ।
निर्विशेषमसंबद्धमात्मानं योगिनो विदु: ।।५२ ।।
अन्वय :- योगिन: आत्मानं कर्म-नोकर्म-निर्मुक्तं अमूर्तं अजर-अमरं निर्विशेषं असंबद्धं विदु: ।
सरलार्थ :- योगीजन आत्मा को ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्मो, राग-द्वेषादि भावकर्मो और शरीर आदि नोकर्मो से रहित; स्पर्श, रस, गंध, वर्ण से विहीन; अजर-अमर, गुणभेद से शून्य-सामान्यस्वरूप और सर्वप्रकार के संबंधों एवं बंधनों से रहित तथा स्वाधीन जानते हैं, मानते हैं एवं बतलाते हैं ।