योगसार - जीव-अधिकार गाथा 53
From जैनकोष
आत्मा में स्वभाव से वर्णादि का अभाव -
वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श-शब्द-देहेन्द्रियादय: ।
चेतनस्य न विद्यन्ते निसर्गेण कदाचन ।।५३ ।।
अन्वय :- चेतनस्य वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श-शब्द-देह-इन्द्रियादय: निसर्गेण कदाचन (अपि) न विद्यन्ते ।
सरलार्थ :- चेतन आत्मा में स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द, देह, इन्द्रियाँ इत्यादिक स्वभाव से किसी समय भी विद्यमान नहीं होते ।