योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 273
From जैनकोष
शुद्ध आत्मा को छोड़नेवालों की स्थिति -
मुक्त्वा विविक्तमात्मानं मुक्त्यै येsन्यमुपा सते।
ते भजन्ति हिमं मूढा विमुच्याग्निं हिमच्छिदे ।।२७३।।
अन्वय :- विविक्तं आत्मानं मुक्त्वा मुक्त्यै ये अन्यं उपासते ते मूढा: हिमच्छिदे अग्निं विमुच्य हिमं (एव) भजन्ति ।
सरलार्थ :- विविक्त अर्थात् (द्रव्यकर्म-भावकर्म-नोकर्म से रहित) त्रिकाली, निज शुद्ध, सुख-स्वरूप भगवान आत्मा को छोड़कर जो अन्य (कल्पित रागी-द्वेषी देवी-देवताओं को अथवा अरहंत-सिद्ध आदि इष्ट देवों) की भी मुक्ति के लिये उपासना/ध्यान करते हैं, वे मूढ़ कष्टदायक अति ठंड का नाश करने के लिये अग्नि को छोड़कर शीतलस्वभावी बर्फ का ही सेवन करते हैं, जो नियम से अनिष्ट फल-दाता है ।