योगसार - बन्ध-अधिकार गाथा 175
From जैनकोष
ज्ञानी अबंधक एवं अज्ञानी बंधक -
ज्ञानीति ज्ञान-पर्यायी कल्मषानामबन्धक: ।
अज्ञश्चाज्ञान-पर्यायी तेषां भवति बन्धक: ।।१७५।।
अन्वय :- इति (य:) ज्ञानी ज्ञान-पर्यायी (अस्ति; स:) कल्मषानां अबन्धक: (भवति) (य:) च अज्ञ: अज्ञान-पर्यायी (अस्ति; स:) तेषां (कल्मषानां) बन्धक: भवति ।
सरलार्थ :- जो ज्ञानी अर्थात् सम्यग्दृष्टि आदि साधक हैं, वह ज्ञान-पर्यायी अर्थात् ज्ञानरूप परिणमन को लिये हुए हैं; इसलिए मिथ्यात्वादिरूप पापकर्मो के अबन्धक हैं । और जो अज्ञानी हैं वह अज्ञान-पर्यायी हैं; अर्थात् अज्ञानरूप परिणमन को लिये हुए हैं, इसलिए वे मिथ्यात्वादि पापकर्मो के बन्धक हैं ।