योगसार - बन्ध-अधिकार गाथा 176
From जैनकोष
कर्मफल को भोगनेवाले ज्ञानी और अज्ञानी में अन्तर -
दीयमानं सुखं दु:खं कर्मणा पाकमीयुषा ।
ज्ञानी वेत्ति परो भुङ्क्ते बन्धकाबन्धकौ तत: ।।१७६।।
अन्वय :- पाकं ईयुषा कर्मणा दीयमानं सुखं दु:खं ज्ञानी वेत्ति पर: (अज्ञानी) भुङ्क्ते तत: (तौ द्वौ) बन्धकाबन्धकौ (भवत:)।
सरलार्थ :- पूर्वबद्ध कर्म के अनुभाग-उदय से प्राप्त सुख और दु:ख को ज्ञानी जीव मात्र जानता है और अज्ञानी भोगता है । इसकारण ज्ञानी कर्मो का अबन्धक है और अज्ञानी बन्धक ।