योगसार - बन्ध-अधिकार गाथा 181
From जैनकोष
रागादि सहित जीव के शुभाशुभ परिणाम -
सन्ति रागादयो यस्य सचित्ताचित्त-वस्तुषु ।
प्रशस्तो वाsप्रशस्तो वा परिणामोsस्य जायते ।।१८१।।
अन्वय :- यस्य (जीवस्य) सचित्त-अचित्त-वस्तुषु रागादय: सन्ति; अस्य प्रशस्त: वा अप्रशस्त: परिणाम: जायते ।
सरलार्थ :- जिस जीव के चेतन-अचेतन वस्तुओं में राग-द्वेष-मोह भाव होते हैं, उसके प्रशस्त/शुभ, अप्रशस्त/अशुभ परिणाम उत्पन्न होते हैं ।