योगसार - बन्ध-अधिकार गाथा 180
From जैनकोष
मुक्ति का कारण -
दु:खतो बिभ्यता त्याज्या: कषाया: ज्ञान-शालिना ।
ततो दुरित-विच्छेदस्ततो निर्वृति-सङ्गम: ।।१८०।।
अन्वय :- दु:खत: बिभ्यता ज्ञान-शालिना कषाया: त्याज्या: (सन्ति) । तत: दुरित- विच्छेद: (भवति) । तत: निर्वृति-सङ्गम: (जायते) ।
सरलार्थ :- इसलिए दु:ख से भयभीत ज्ञानवान जीव को मिथ्यात्व, कषायादि का त्याग करना चाहिए । मिथ्यात्वादि के त्याग से पुण्य-पापरूप दु:खद कर्मो का नाश होता है और कर्मो के विनाश से सहज ही मुक्ति की प्राप्ति होती है ।