योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 309
From जैनकोष
भव्य जीवों के भाग्यानुसार केवली का उपदेश -
साक्षादतीन्द्रियानर्थान् दृष्ट्वा केवलचक्षुषा ।
प्रकृष्ट-पुण्य-सामर्थ्यात् प्रातिहार्यसमन्वित: ।।३०९।।
अवन्ध्य-देशन: श्रीमान् यथाभव्य-नियोगत: ।
महात्मा केवली कश्चिद् देशनायां प्रवर्तते ।।३१०।।
अन्वय :- केवलचक्षुषा अतीन्द्रियान् अर्थान् साक्षात् दृष्ट्वा प्रकृष्ट-पुण्य-सामर्थ्यात् प्रातिहार्यसमन्वित: श्रीमान् अवन्ध्य-देशन: कश्चित् केवली महात्मा यथाभव्य-नियोगत: देशनायां प्रवर्तते ।
सरलार्थ :- केवलज्ञान तथा केवलदर्शरूप चक्षु से अतींद्रिय पदार्थो को साक्षात्/प्रत्यक्ष देखकर जानकर विशेष पुण्य के सामर्थ्य से अष्ट प्रातिहार्य से सहित अंतरंग तथा बहिरंग-लक्ष्मी से संपन्न - अमोघ देशना-शक्ति को प्राप्त कोई केवली महात्मा, जैसा भव्य जीवों का नियोग अर्थात् भाग्य होता है, तदनुसार देशना अर्थात् धर्मोपदेश देने में प्रवृत्त होते हैं ।