योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 314
From जैनकोष
केवलज्ञान में क्षेत्रगत दूरी बाधक नहीं है -
प्रतिबन्धो न देशादि-विप्रकर्षोsस्य युज्यते ।
तथानुभव-सिद्धत्वात् सप्तहेतेरिव स्फुट् ।।३१४।।
अन्वय :- सप्तहेते: इव अस्य (केवलज्ञानिन: ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञातुं) देशादि-विप्रकर्ष: प्रतिबन्ध: न युज्यते (यत:) तथा स्फुटं अनुभव-सिद्धत्वात् ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार पृथ्वी और सूर्य के मध्य की दूरी में - जितने भी छोटे-बड़े जीवादि पदार्थ स्थित हैं, वे सभी सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं, तब दूरी का विषय सूर्य के प्रकाशकत्व में विरोधरूप/बाधक नहीं होता, यह अनुभवसिद्ध है; उसीप्रकार केवलज्ञानी का ज्ञान क्षेत्र की अपेक्षा से दूरवर्ती मेरु पर्वतादि, अन्तरित राम-रावणादि और सूक्ष्म परमाणु-कालाणु आदि ज्ञेय उन सबको केवलज्ञान जब जानता है, तब उस दूरवर्ती पदार्थ की क्षेत्रगत दूरी जानने में बाधक नहीं हो सकती ।