योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 322
From जैनकोष
ज्ञान, जड़ का धर्म नहीं -
न ज्ञानं प्राकृतो धर्मो मन्तव्यो मान्य-बुद्धिभि: ।
अचेतनस्य न ज्ञानं कदाचन विलोक्यते ।।३२२।।
अन्वय :- मान्य-बुद्धिभि: ज्ञानं प्राकृत: धर्म: न मन्तव्य: (यत:) अचेतनस्य (पदार्थस्य) ज्ञानं कदाचन न विलोक्यते ।
सरलार्थ :- जो मान्यबुद्धि अर्थात् विवेकशील विद्वान् हैं, उन्हें ज्ञान गुण को प्रकृति अर्थात् जड का धर्म नहीं मानना चाहिए; क्योंकि अचेतन पदार्थ में ज्ञानगुण कभी किसी को प्रत्यक्ष में देखने को नहीं मिलता ।