योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 321
From जैनकोष
सिद्धात्मा, शरीर ग्रहण नहीं करते -
शरीरं न स गृह्णाति भूय: कर्म-व्यपायत: ।
कारणस्यात्यये कार्यं न कुत्रापि प्ररोहति ।।३२१।।
अन्वय :- स: (मुक्तात्मा) कर्म-व्यपायत: भूय: शरीरं न गृह्णाति (यत:) कारणस्य अत्यये कार्यं कुत्र अपि न प्ररोहति ।
सरलार्थ :- अनंत सुखी एवं शरीर रहित मुक्तात्मा ज्ञानावरणादि आठों कर्मो का विनाश हो जाने से पुन: विनाशीक शरीर को ग्रहण नहीं करते; क्योंकि कारण का नाश हो जाने पर कहीं और कभी भी कार्य उत्पन्न नहीं होता ।