योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 328
From जैनकोष
जीव के भेदों का लक्षण -
संसारी कर्मणा युक्तो मुक्तस्तेन विवर्जित: ।
अशुद्धस्तत्र संसारी मुक्त: शुद्धोsपुनर्भव: ।।३२८।।
अन्वय :- कर्मणा युक्त: (जीव:) संसारी, तेन विवर्जित: मुक्त: (अस्ति) । तत्र संसारी अशुद्ध: (च) मुक्त: शुद्ध: अपुनर्भव: ।
सरलार्थ :- जो जीव ज्ञानावरणादि आठ कर्मो से सहित हैं, उन्हें संसारी जीव कहते हैं और जो जीव ज्ञानावरणादि आठों कर्मो से रहित हैं, उन्हें मुक्त जीव कहते हैं । इन दोनों में जो संसारी हैं, वे अशुद्ध जीव हैं और जो मुक्त हैं, उन्हें शुद्ध कहते हैं, जिनका नाम अपुनर्भव भी है ।