योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 344
From जैनकोष
आत्मध्यान की अंतरंग सामग्री -
आगमेनानुानेन ध्यानाभ्यास-रसेन च ।
त्रेधा विशोधयन् बुद्धिं ध्यानमाप्नोति पावनम् ।।३४४।।
अन्वय :- आगमेन अनुमानेन ध्यानाभ्यास-रसेन च त्रेधा (स्व) बुद्धिं विशोधयन् (ध्यातासाधक:) पावनं ध्यानं आप्नोति ।
सरलार्थ :- आगम से, अनुमान ज्ञान से और ध्यानाभ्यासरूप रस से - इन तीन प्रकार की पद्धति से अपनी बुद्धि को विशुद्ध करनेवाला ध्याता/साधक, पवित्र आत्मध्यान को प्राप्त होता है ।