वर्णीजी-प्रवचन:कार्तिकेय अनुप्रेक्षा - गाथा 215
From जैनकोष
जदि णं हवदि सा सत्ती सहाव-भूदा हि सव्व-दव्वाणं ।
एक्केक्कास-पएसे कह ता सव्वाणि बट्टंति ।।215।।
असंख्यातप्रदेश वाले लोक में अनंतानंत पदार्थों के समा जाने का कारण―यदि सभी पदार्थों में परस्पर समा जाने की शक्ति न हो तो एक आकाश प्रदेश पर इतने द्रव्य कैसे समा जायेंगे? मूल प्रश्न यह था कि लोकाकाश के प्रदेश तो असंख्यात हैं, अनंत नहीं हैं और इस लोकाकाश में अनंत तो जीव समाये हुए हैं । प्रदेश हैं अनगिनते, मायने जिनकी हद है और जीव इतने हैं जिनकी हद नहीं है और एक-एक जीव के साथ अनंत कार्माणवर्गणायें लगी हैं, अनंत शरीरवर्गणायें लगी हैं और वे सब अनंतगुणी है, तो इतने प्रदेश थोड़े से प्रदेश में समा कैसे गए? सो उसका उत्तर यह है कि उन सब पदार्थों में एक दूसरे में समा जाने की शक्ति है । प्रदेश का लक्षण बताया है कि एक परमाणु जितनी जगह को घेरे उसे एक प्रदेश कहते हैं । एक क्षेत्र का छोटा से छोटा माप है प्रदेश । जैसे एक हाथ में 24 अंगुल होते हैं, एक अंगुल में कई सूत होते हैं, तो ऐसे ही कम से कम का माप है प्रदेश । एक परमाणु जितनी जगह घेर सकता है उसे एक प्रदेश कहते हैं । एक प्रदेश में कई परमाणु रह सकते, पर एक परमाणु दो प्रदेशों पर नहीं रह सकता । तो इतने छोटे स्थान का नाम है प्रदेश । अब अंदाज कीजिए कि सूई की नोक यदि कागज पर गड़ा दी जाय तो कितना छोटा गढ़ा होता है, उस गढ़े में भी असंख्यात प्रदेश होते हैं । तब समझिये कि एक प्रदेश कितना छोटा होता है, और उससे अंदाज लगाइये कि एक परमाणु कितना छोटा कहलाया । परमाणु को सूक्ष्म-सूक्ष्म कहा है ।
परमार्थस्वरूप की सुध न होने से अज्ञानीजनों का मायाजाल में व्यामोह―ये जो आंखों दिखते हैं ये सब स्कंध हैं इन्हें माया कहते हैं । माया नाम उसका है जो सदा नहीं रहता । जो विकार है, विभाव है, नष्ट हो जायगा, सकल बदल जायगी वह सब माया कहलाती है । तो अज्ञानी जनों की प्रीति माया में हो रही है वास्तविक वस्तु में नहीं । वास्तविक पदार्थ तो इस पुद्गल का है परमाणु । एक परमाणु से किसको मोह है? एक परमाणु का तो लोगों को पता भी नहीं है । लोगों को जो कुछ यहाँ दिख रहे हैं सो मायारूप स्कंध दिख रहे हैं । वास्तविक वस्तु में कोई मोह राग नहीं कर रहा । इस मायाजाल से ही जीव को मोह राग उत्पन्न हो रहा है । यदि इन पदार्थों में परमार्थ परमाणु को कोई तकने लगे तो उसकी दृष्टि में यह माया हट जायगी, उसे फिर मोह न रहेगा । तो समझिये कि परमाणु कितना छोटा होता है? इसी तरह आगे आयगा कालद्रव्य का वर्णन तो उसमें एक समय कितना छोटा कहलाता है यह बताया जायगा । आंख के पलक जितना जल्दी जितने क्षण में उठते गिरते हैं, एक पलक के गिरने में जितना समय लगता है उसमें अनगिनते समय हुआ करते हैं, तो ऐसे जो सूक्ष्म पदार्थ हैं उन पदार्थों की इन अज्ञानियों को सुध नहीं है ।
अब जीव में भी देखो कि वास्तविक जीव क्या है? जिसका परिचय है, यह मनुष्य है, गाय है, घोड़ा है आदि जितने व्यवहार करते हैं, जितने परिचय रखते हैं वे सब जीव के सत्य स्वरूप नहीं हैं । जीव वास्तव में क्या है, कितना है? तो जीव को समझने का आधार है ज्ञान, याने ज्ञानरूप में यदि जीव को सोचा जाय तो
जीव का परिचय मिलता है । अन्य उपायों से जीव का परिचय नहीं मिलता है । इन देहों को देखने से जीव का परिचय नहीं मिलता और क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह रागादिक भावों पर ध्यान देने से भी जीव का परिचय नहीं मिलता । जीव उतना बड़ा है जितना कि शरीर । उस शरीर के माफिक जीव का विस्तार निरखा जाय उससे भी जीव का अच्छा परिचय नहीं मिलता, जिस परिचय के बाद अनुभव हो जायेगा ऐसा परिचय अन्य उपायों से नहीं मिलता । एक इस अपने को, जीव को ज्ञानमात्ररूप से सोचिये―केवल मैं ज्ञानस्वरूप हूँ, जाननहार हूँ, चैतन्य हूँ, बस इतना ही मेरा काम है, यही मेरा अनुभवन है । यदि ज्ञानमात्र अपने आपको विचारा जाय तो उसमें जीव का परिचय मिलता है । तब जानें कि जीव के नाते हमने पहिले कुछ समझा कि यह जीव है पर उन सबमें वह जीवत्व नहीं दिखा । जीव इतना सूक्ष्म है कि वह केवल प्रतिभासमात्र, चैतन्यमात्र है । तो बतला यह रहे कि इन मोहियों को जिसमें प्रीति उत्पन्न होती है वह सब मायाजाल है । यह शरीर, ये मनुष्य, ये पशुपक्षी आदि सब मायारूप हैं, शाश्वत रूप नहीं हैं । तो क्षेत्र की बात यहां कह रहे हैं कि आकाश में सबसे छोटा माप है प्रदेश । प्रदेश है उतनी जगह का नाम जितनी जगह को एक परमाणु रोके, उसको प्रदेश कहते हैं । ऐसे-ऐसे अनंत प्रदेशात्मक यह आकाश है । यहाँ तक इस लोक भावना में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश का वर्णन किया । अब कालद्रव्य का वर्णन करते हैं।