वर्णीजी-प्रवचन:कार्तिकेय अनुप्रेक्षा - गाथा 303
From जैनकोष
जदि ण हवदि सव्वण्हू ता को जाणदि अदिंदियं अत्थं ।
इंदिय-णाणं ण मुणदि थूलं पि असेस-पज्जायं ।।303।।
सर्वज्ञ के अस्तित्व की जिज्ञासा―कोई दार्शनिक ऐसे हैं जो सर्वज्ञ को नहीं मानते । उन दार्शनिकों के प्रति कहा जा रहा है कि यदि सर्वज्ञदेव न हों तो अतींद्रिय पदार्थ को कौन जानेगा ? इंद्रिय ज्ञान तो समस्त पर्याययुक्त स्थूल पदार्थ को भी नहीं जान सकता । इंद्रिय से जो ज्ञान उत्पन्न होता है, वह अतींद्रिय पदार्थ को जानेगा किस तरह ? इससे यह स्वीकार करना चाहिए कि कोई सर्वज्ञ होता है जो कि समस्त अतींद्रिय पदार्थों को स्पष्ट जान लेता है । यहाँ कोई दार्शनिक प्रश्न कर रहा है ? जो सर्वज्ञ नहीं मानता । कहता है कि सर्वज्ञ नहीं है यह बात तो स्पष्ट सिद्ध है, क्योंकि सर्वज्ञ पाया नहीं जा रहा, अगर हो तो उसे, हमें आंखों दिखाओ या उसके पास ले चलो । तो सर्वज्ञ नहीं है क्योंकि उसकी उपलब्धि नहीं पायी जा रही, और किसी भी प्रमाण से सर्वज्ञ सिद्ध नहीं होता, इस कारण सर्वज्ञ की जबरदस्ती सिद्धि करना युक्त नहीं है । दार्शनिकों में जो लोग सर्वज्ञ नहीं मानते उनमें दो ही प्रधान हैं―एक मीमांसक और दूसरे चार्वाक । चार्वाक तो एकदम नास्तिक हैं, वे किसी अमूर्त, अदृश्य पदार्थ को मानते ही नहीं हैं, उनको जो आँखों दिखे उसे ही मानते हैं । मीमांसक भी जीव को तो मानते हैं, पर इतना ही मानते हैं कि वह क्रियाकांड करके, यज्ञ विधान आदिक करके बैकुंठ को प्राप्त हो जाय, मगर उस बैकुंठ की भी हद होती है । जब समय पूरा हो जाता है तो वहाँ से गिरना पड़ता है, फिर संसार में जन्ममरण करना पड़ता है, इनके सिद्धांत में केवल एक ही ईश्वर है सदामुक्त, सदाशिव जो कि न कभी संसारी था और न कभी संसारी बनेगा । लेकिन संसार की सारी विडंबनायें कराता रहता है । तो मीमांसक दर्शन में सर्वज्ञ को नहीं माना, उनकी ओर से यह आशंका हो रही है कि सर्वज्ञ तो है ही नहीं, क्योंकि वह दिखता नहीं और प्रत्यक्ष अनुमान आगम आदिक किसी भी प्रमाण से उस सर्वज्ञ की सिद्धि होती नहीं ।
सर्वज्ञत्व की प्रसिद्धि―जो पुरुष सर्वज्ञ नहीं मानते उनके प्रति समाधान में कहा जा रहा है कि यदि सर्वज्ञ नहीं होता तो अतींद्रिय पदार्थ जो इंद्रिय द्वारा अगम्य है ऐसे सूक्ष्म देशकाल के दूरवर्ती पदार्थों को फिर कौन जानेगा ? सूक्ष्म पदार्थ तो परमाणु आदिक हैं, सो मीमांसक परमाणु आदिक को मानते तो हैं, पर यह बतलाओ कि जो चीज किसी के द्वारा जानी नहीं जा सकती वह सत् कैसे हो सकती है ? तो सूक्ष्म परमाणु आदिक और अंतरित पदार्थ याने जो स्वभाव से बहुत दूर हैं, अंतरित हैं, ऐसे जीव पुण्य पाप आदिक इनको कौन जानेगा ? यदि सर्वज्ञ न हों, मीमांसक मानते तो हैं इसको जीव भी हैं, पुण्य पाप भी हैं, मगर इनके जानने वाले यदि कोई नहीं हैं तो फिर ये क्या हैं ? कुछ भी नहीं । यदि सर्वज्ञ न हो तो जीव पुण्य पाप आदिक को कौन जान सकेगा? इसी प्रकार कुछ पदार्थ होते हैं काल से अंतरित याने बहुत पहिले समय में हुए । जैसे राम रावण आदिक इनकी चर्चा पुराणों में चलती है, मगर बहुत काल पहिले ये हुए हैं । अगर सर्वज्ञ न हो तो इन्हें जाने कौन और किस तरह इनका चरित्र आज तक चला आ सकता था ? कुछ पदार्थ दूरवर्ती होते हैं जैसे मेरूपर्वत, नरक स्वर्ग
आदिक । इन पदार्थों को भी कौन जानेगा यदि सर्वज्ञ न हो ? यदि सर्वज्ञ न होता तो इन पदार्थों की चर्चा आज हो न सकती थी । इससे सिद्ध है कि सर्वज्ञ है, सबका कोई प्रत्यक्ष ज्ञाता है, क्योंकि ये पदार्थ अनुमेय बन रहे हैं । जिस चीज का अनुमान क्रिया जाता हो उस चीज का कोई स्पष्ट जानने वाला भी होता है । जैसे पर्वत में धुआं देख करके, यह अनुमान किया कि इस पर्वत में अग्नि है धुवाँ होने से । तो जब अग्नि अनुमेय बन गयी तो यह भी निश्चित है कि कोई पुरुष उस अग्नि को साक्षात् जानता भी है । जो उस पर्वत पर रहने वाला पुरुष होगा और उसके निकट कोई पहुंचा हुआ होगा वह तो स्पष्ट जान लेता है कि यह अग्नि है । अथवा वही अनुमाता पुरुष निकट जाकर स्पष्ट जान लेगा कि अग्नि है यह तो जो पदार्थ अनुमेय होते हैं उनका कोई न कोई स्पष्ट ज्ञाता होता है । तो जब ये परमाणु जीव पुद्गल, पुण्य पाप, मेरूपर्वत, नरक स्वर्ग आदिक, राम रावण आदिक ये सब ज्ञेय बन रहे हैं तो उनका कोई प्रत्यक्ष ज्ञाता भी है, यों सर्वज्ञ की सिद्धि होती है । इंद्रियज्ञान तो अपने नियत विषय को जानेगा, इन सूक्ष्म पदार्थों को नहीं जान सकता, और इंद्रियज्ञान इन स्थूल पदार्थों को जानेगा सो भी स्थूल पदार्थ में जो-जो परिणतियां हैं वे सब परिणतियाँ सत् नहीं जानी जा सकतीं । कुछ एक-दो घंटे बात जानेगी । ये इंद्रियाँ जिसे जानती हैं उसे भी पूरे तोर से नहीं जान सकतीं । तब फिर इन समस्त पर्यायों सहित इन लोकालोकवर्ती पदार्थों को सर्वज्ञ ही जान सकता है । इस इंद्रियज्ञान में सामर्थ्य नहीं है कि इन पदार्थों को जान सके । इस प्रकार सर्वज्ञ भगवान का अस्तित्व सिद्ध होता है । अब यह सुनो कि सर्वज्ञदेव ने जो उपदेश किया है वह धर्म क्या है ? उस धर्म को अंगीकार करने से ही जीव का उद्धार हो सकता है ।