वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1033
From जैनकोष
एकैककरणपरवशमपि मृत्युं याति जंतुजातमिदम्।
सकलाक्षविषयलोल: कथमिह कुशली जनोऽन्य: स्यात्।।1033।।
पांचों इंद्रियों के वशी मानवों की दुर्दशा का संकेत―उक्त छंद में यह बताया गया था कि देखो एक-एक इंद्रिय के वश होकर ये प्राणी कैसे मर रहे हैं। उस बात को सुनकर मनुष्यों को यह बात ध्यान में लाना चाहिए कि देखो एक-एक इंद्रिय के विषय के वश होकर ये जीव मरण को प्राप्त होते, पर जो कामीजन पंचेंद्रिय के विषयों में आसक्त हैं उनका भला किस प्रकार हो सकता है? अच्छा अपने इंद्रियविषयों में ही परीक्षा करो। किस इंद्रिय का राग आपको अधिक बना हुआ है? और किसका नहीं? सभी लोग अपनी-अपनी बात विचारिये। अगर कोई कहे कि हमें और इंद्रियों का राग तो है मगर कर्णेंद्रिय का कुछ राग नहीं है क्योंकि मैं राग रागिनी की बातें सुनता नहीं,संगीत की चीजें सुनता, तो उसका यह सोचना गलत है। भले ही उसे ऐसा जँच रहा हो अन्य विषयों का तीव्रराग होने से। जैसे कोई लोभी पुरुष धन कमाने में अपना रात-दिन गुजारता है तो उसे फुरसत ही नहीं है कि चलो आराम से संगीत सुन लें, तो क्या उसे यह कह दिया जायगा कि उसे कर्णेंद्रिय का राग नहीं है? खूब अच्छी दृष्टि से विचार करो तो प्राय: साधारण तथा मनुष्य पंचेंद्रिय के विषयों के वश हैं। तो जो एक-एक इंद्रिय के विषय वश हैं उनकी तो यह दशा है।फिर जो पंचेंद्रिय के विषयवश हों उनकी न जाने क्या दशा होगी? कोई कहे कि उस दशा का तो यहाँवर्णन ही नहीं किया? वह तो एक-एक इंद्रिय के वश हुए प्राणियों की दुर्गति बतायी। पंचेंद्रिय के विषयों में वश हुए प्राणी का तो वर्णन ही नहीं किया।वह तो एक इंद्रिय के वश हुए प्राणियों की दुर्गति बतायी पंचेंद्रिय के विषयों में वश प्राणी का तो वर्णन ही नहीं किया।तो अनुमान लगा लो, यह तो बहाना है। एक कथानक है कि एक पुरोहित राजा को रोज शास्त्र सुनाया करता था एक दिन वह पुरोहित कहीं बाहर चला गया। अपने लड़के से कह गया राजा को शास्त्र सुनाने के लिए। सो उस दिन लड़के ने शास्त्र सुनाया। उस दिन यह प्रकरण था कि जो रत्ती भर भी माँस खाता है वह नरक जाता है। इस बात को सुनकर राजा को बड़ा बुरा लगा। दूसरे दिन जब पुरोहित आया तो राजा ने बताया कि तुम्हारा लड़का तो इस तरह कह रहा था कि जो रत्ती भर भी माँस खाता है वह नरक को जाता है। तो पुरोहित ने कहा कि राजन् इसमें आपको खेद मानने की आवश्यकता नहीं। अरे उसने यही तो कहा था कि जो रत्ती भर माँस खाता है वह नरक जाता है। उसने यह तो नहीं कहा कि ढेरों (अधिक) माँस खाता है वह नरक जाता है।उसने यह तो नहीं कहा कि जो अधिक माँस खाता है वह नरक जाता है।अब भला बतलाओ जो ढेरों (अधिक) माँस खायगा वह अधिक नरकों में जायगा, बारबार नरकों में जायगा। जैसे 7 वें नरक में पहुँचा हुआ जीव फिर भी नरक में जायगा। यद्यपि वह तुरंत न जायगा, वहाँसे निकलकर तिर्यंच वगैरह चाहे हो जाय मगर बाद में फिर उसे नरक जरूर जाना पड़ेगा। क्योंकि उसने ऐसा ही खोटा कर्मबंध किया है। तो यहाँ यह बात कह रहे थे कि जो पंच इंद्रियों के वशीभूत प्राणी हैं उनकी तो दुर्गति अधिक ही होगी।