वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1159
From जैनकोष
शाम्यंति जंतव: क्रूरा बद्धवैरा परस्परम्।
अपि स्वार्थे प्रवृत्तस्य मुने: साम्यप्रभावत:।।1159।।
समतापरिणाम में ऐसा प्रभाव है कि इस समतापरिणाम के कारण मुनि के निकट जितने भी जंतु आयें, क्रूर से भी क्रूर हों और उनका परस्पर में एक दूसरे से बैर हों और उनका परस्पर में एक दूसरे से बैर हो तो भी वे शांत हो जाते हैं। मुनिराज वहाँ कुछ नहीं कर रहे। वे अपने आत्मीय प्रयोजना में ही लग रहे। अपना जो निर्मल ज्ञानदर्शन आनंदस्वरूप है उस स्वरूप में ही मग्न हो रहे हैं, लेकिन अपने स्वरूप में मग्न होने से जो समतापरिणाम बना उस परिणाम का ऐसा प्रताप हे कि क्रूर भी जंतु शांत हो जाते हैं। उनके निकट सिंह और हिरण एक साथ बैठे रहते हैं। उनका बैर खतम हो जाता है, परस्पर प्रीतिपूर्वक रहते हैं। यह सब समता का परिणाम है।