वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1183
From जैनकोष
अभिचारपरै: कैश्चित्कामक्रोधादिवंचतै:।
भोगार्थमरिघातार्थं क्रियते ध्यानमुद्धतै:।।1183।।
कितने ही लोग जो विचार वृत्ति वाले हैं, कोई किसी के वश में करने के लिए मंत्र सिद्ध करना चाहते, कोई अंजन ऐसा सिद्ध करते कि जिसे आँख में लगा लें तो दूसरे को शरीर न दिखे और फिर चोरी करना, अनेक कौतूहल आदिक विचारों में जो तत्पर रहा करते हैं ऐसे पुरुष अथवा जो काम क्रोध आदिक से ठगाये गए हैं ऐसे मूढ़पुरुष भोगों के लिए और शत्रुवों के घात के लिए ध्यान किया करते हैं। कितने ही क्रूर लोग ऐसे हैं कि कोई साधना करेंगे तो दूसरों के ठगने के लिए दूसरों का नाश करने के लिए। दूसरों के घात करने का ही विधिविधान बनाया करते हैं लेकिन उससे बचने का उपाय बिल्कुल अमोघ है। वह अमोघ उपाय है णमोकार मंत्र का विशुद्ध ध्यान। णमोकार मंत्र का विशुद्ध ध्यान हो तो किसी के द्वारा भी कराया गया मंत्र टल सकता है। यों ही पढ़ देने से नहीं किंतु श्रद्धापूर्वक विशुद्ध ध्यान किया जाय तो मंत्र टल सकता है। णमोकार मंत्र का बड़ा माहात्म्य है। इस णमोकार मंत्र से कितने ही लोगों ने पूर्वकाल में बड़े-बड़े काम सिद्ध किये, और छोटी बातों में तो अब भी लोग अनुभव करते हैं कि अमुक विपदा पड़ी, इन पंचपरमेष्ठियों का ध्यान किया लो विपदा टल गयी। अनेक प्रसंग ऐसे होते हैं। सो मूढ़जन काम, क्रोध आदिक के वशीभूत होकर जो ध्यान किया करते हैं वह उद्दंड भोगों के लिए या दूसरों के घात के लिए, जिन्हें अनिष्ट समझा है, दुश्मन समझा है उनके विनाश के लिए किया करते। बतावो कितना बड़ा अज्ञान है कि क्या करना चाहिए था मनुष्यभव में और क्या-क्या कर लिया जाता है?