वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1216
From जैनकोष
रुद्राशयभवं भीममपि रौद्रं चतुर्विधम्।
कीर्त्यमानं विदंत्वार्या: सर्वसत्त्वाभयप्रदा:।।1216।।
आर्तध्यान के बाद अब रौद्रध्यान का स्वरूप कहा जा रहा है। रौद्र आशय से उत्पन्न हुआ जो भयानक ध्यान है उसे रौद्रध्यान कहते हैं। जो पुरुष हिंसा करने में कराने में कुछ आनंद मानते हैं उनका भयानक ही तो काम है। जिससे अनेक जीवों का उपकार होता है, झूठ बोलने में, झूठी गवाही देने में, झूठे षड़यंत्र रचने में जो कुछ आनंद माना है वे सब रौद्रध्यान ही तो हैं। चोरी करने में कराने में जो आनंद समझते हैं वे सब रौद्रध्यान हैं और विषयों के साधनों के संरक्षण में, संचय में जो आनंद माना जाता है वह सब रौद्रध्यान है। तो ऐसे रौद्रध्यान करने वाले पुरुषों का आशय क्रूर होता है। भले ही मौज मान रहे हैं पर आशय उनका भला नहीं है। तो रुद्र आशय से उत्पन्न हुआ भयानक भी यह रौद्रध्यान चार प्रकार का कहा गया है। ऐसे वीतराग ऋषि संतों ने कहा है जो सब प्राणियों को अभयदान देने वाले हैं, जिनका उपदेश सबके हित के लिए है। जो जीवदया का उपदेश दिया है प्रभु ने उस उपदेश से देखो सबका हित होता कि नहीं। यदि मनुष्य हैं, दया पालकर अपना धर्म निभाते हैं तो यह तो मनुष्यों का उपकार है और दया पालने से जो जीव बच गए, जिन जीवों की हिंसा नहीं हुई इससे उन जीवों का भी भला है। तो उन ऋषियों का उपदेश सबकी भलाई करने वाला होता है। उन्होंने बताया है कि रौद्रध्यान चार प्रकार का होता है।