वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 126
From जैनकोष
सर्वैं सर्वेंऽपि संबंधा: संप्राप्ता देहधारिभि:।
अनादिकालसंभ्रांतैस्त्रसस्थावरयोनिषु।।126।।
अनादिकाल से भ्रमण करने वालों का परस्पर सबसे संबंध की घटनायें― इस संसार में अनादि काल से भ्रमण करते हुए जीवों ने सभी जीवों के साथ सभी प्रकार के संबंध पाये हैं। आज जिन्हें आप गैर मानते हैं, जो दूसरे घर के हैं, दूसरे देश के हैं वे सभी जीव आपके अनेक बार कुटुंबी बन चुके हैं। ऐसा कोर्इ भी जीव अथवा ऐसा कोई भी समय बाकी नहीं रहा जो इस जीव ने न पाया हो। आज जिसका यह पिता कहलाता है कभी उसका यह पुत्र भी था, पर नाना भवों की बात तो जाने दो, ऐसा भी संभव हो सकता कि इस ही भव का जो पुत्र है इस पिता के मरने के बाद यह पिता उस ही पुत्र का पुत्र बन जाय। ऐसा कोई संबंध नहीं बचा जो संबंध सब जीवों के साथ न जुड़ा हुआ हो। जब अनंतकाल, अनंत भव इस जीव ने धारण किये तो किसी न किसी रूप में प्रत्येक जीव से इसका संबंध हुआ है। आज यह मोहवश अज्ञानवश ऐसा भाव कर रहा है कि ये लोग मेरे हैं, ये लोग गैर हैं। क्या-क्या हुआ उन परिवर्तनों में सो भी सुनिये―