वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1263
From जैनकोष
चतस्रो भावना धन्या: पुराणपुरषाश्रिता:।
मैत्र्यादयश्चिरं चित्ते ध्येया धर्मस्य सिद्धये।।1263।।
धर्मध्यान की सिद्धि के लिए चार प्रकार की भावनाएँ चित्त में धारण करना चाहिए। वे चार भावनाएँ हैं― मैत्रीभाव, कारुण्य, प्रमोद और माध्यस्थ। ये चार भावनाएँ यथार्थरूप से सम्यग्दृष्टि तत्त्वज्ञानी के हुआ करती हैं और मंद कषाय में कदाचित् मिथ्यादृष्टि के भी हो जाय, पर जो इसका यथार्थ स्वरूप है पूर्ण सूक्ष्मरूप उस तरह से यह सम्यग्दृष्टि ज्ञानी पुरुष के ही होता है। आगे बताया जायगा जिससे यह स्पष्ट होता जायगा कि तत्त्वज्ञान में ही, किंतु यथार्थरूप से ये चार भावनाएँ होती हैं प्रथम मैत्रीभावना को इन दो श्लोकों में कहते हैं।