वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1290
From जैनकोष
किं च क्षोभाय मोहाय यद्विकाराय जायते।
स्थानं तदपि मोक्तव्यं ध्यानविध्वंसशंकितै:।।1290।।
जो मुनि ध्यानविध्वंस के भय से भयभीत हैं उनको क्षोभकारक तथा विकार करने वाला स्थान भी छोड़ देना चाहिए। जिन स्थानों में शोरगुल से या वध आदिक क्रियावों से या जुवा आदिक खेले जाते हों, जहाँ लड़ने-भिड़ने वाले पशुवों का आवागमन हो अथवा पशु पक्षियों का झुंड रहता हो वे सब क्षोभ करने स्थान हैं। इसी प्रकार जो मोह उत्पन्न करे, जहाँ अविसारिका का निवास हो, उनका आवागमन हो वह स्थान एक सम्मोह को उत्पन्न करता है। जहाँ अनेक तरह के विकारों का योग जुड़ता हो वह भी स्थान योग्य नहीं है।