वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1301
From जैनकोष
यत्र रागादयो दोषा अजस्रं शांति लाघवम्।
तत्रैव वसति: साध्वी ध्यानकाले विशेषत:।।1301।।
जिस स्थान में रागादिक दोष हल्के हो जायें उस ही स्थान में साधु को बसना चाहिए और ध्यान के समय में तो विशेष करके ऐसे ही योग्य स्थान को ग्रहण करना चाहिए। अर्थात् जब किसी ध्यानार्थी योगी पुरुष के यह संकल्प दृढ़ बन जाय कि मुझे तो ध्यान की साधना करना है तो उसका प्रोग्राम ध्यान के लिए ही रहा करता है। अन्य काम करना पड़े तो उसके लिए समय निकालकर करता है। काम तो मेरा केवल विशुद्ध ध्यान की साधना से है, इस प्रकार किस स्थान में बैठकर ध्यानार्थी को ध्यान करना चाहिए? इसका वर्णन किया। अब उन स्थानों में किस तरह से बैठना चाहिए, उन बैठने के प्रकारों का अथवा आसनों का वर्णन करते हैं।