वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1311
From जैनकोष
नि:शेषविषयोतीर्णो निर्विण्णो जन्मसंक्रमात्।
आत्माधीनमना: शश्वत्यर्वदा ध्यातुमर्हति।।1311।।
जिस समय मुनि का चित्त क्षोभरहित हो, आत्मस्वरूप के सम्मुख ही उस काल की ध्यान की सिद्धि निर्विघ्न होती है। जब चित्त में किसी प्रकार का क्षोभ है, किसी के प्रति राग है, किसी के प्रति द्वेष है, अपने आत्मा के स्वरूप के सम्मुख नहीं होता , मैं वास्तव में क्या हूँ, ऐसे अपने आपके विशुद्ध स्वरूप की जिसे खबर नहीं वह पुरुष ध्यानसिद्धि क्या करेगा? जो आत्मस्वरूप के अभिमुख है वह ही पुरुष ध्यान की साधना करता है।