वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1344
From जैनकोष
यत्कोष्ठादतियत्नेन नासाब्रह्मपुरातनै:।
बहि: प्रक्षेपणं वायो: स रेचक इति स्मृत:।।1344।।
फिर उस वायु को उस कोष्ठ से, उस नाभि के स्थान से बड़े प्रयत्न से बाहर फैंके उस रेचक नामक प्राणायाम का अंग कहते हैं। और नासा ब्रह्म में विशारद है वह इस तरह इसमें प्राणायाम के अंग का वर्णन करते हैं।