वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1362
From जैनकोष
बालार्कसन्निभश्चोर्ध्वं सावर्त्तश्चतुरंगुल:।
अत्युष्णो ज्वलनाभिख्य: पवन: कीत्तितो बुधै:।।1362।।
अब इसमें अग्निमंडल का स्वरूप कहा जा रहा है। जिसका वर्ण उगते हुए सूर्य के समान लाल वर्ण हो, जो वायु ऊँचे से चलती हो। ठीक नासिका की सीध में वायु न चलकर कुछ ऊपर की ओर से हवा चलती हो, श्वास चलती हो जो आवर्तोसहित भिड़ती हुई चले। जैसे आग की लपटे कुछ भिड़ती हुई सी जलती हैं, इसी प्रकार जो नासिका से श्वास भिड़ती हुई चलती है वह अग्निमंडल की वायु कहलाती है। चार अंगुल तक जिसका प्रभाव हो और जिसका स्पर्श अत्यंत उष्ण हो वह अग्निमंडल की वायु कहलाती है। वैसे भी उन्हीं आधारों पर लोक में यह प्रसिद्ध है कि यह शरीर चार तत्त्वों का बना है, पर पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु― इन चार तत्त्वों का यह प्रभाव है कि नासिका से जो श्वास निकलती है उस श्वास में उनकी पहिचान बन जाती है कि इसमें पृथ्वीतत्त्व की प्रधानता है अथवा जलतत्त्व की प्रधानता है या अग्नि या वायु तत्त्व की प्रधानता है। कुछ लोग तो ऐसा भी मानते हैं कि इन चार तत्त्वों में से जो प्रभाव बनता है तो अग्नि तत्त्व से तो चक्षुइंद्रिय का निर्माण हुआ, वायुतत्त्व से श्रोत्र का निर्माण हुआ, पृथ्वीतत्त्व से समस्त शरीर पिंड का निर्माण हुआ और उसमें भी प्रधान नासिका इंद्रिय और जलतत्त्व से रसना इंद्रिय का निर्माण हुआ। यह भी एक समानता निरखकर कथन है। और एक स्वर अथवा कुछ परिचय की बातें पहिचानने के लिए कहा गया है। यहाँ स्वरविज्ञान के प्रकरण में जिसमें शुभ अशुभ का निर्णय होगा, उसके लिए इस मंडल का स्वरूप कहा गया है। किस प्रकार की वायु किस समय चली, किस मुद्रा में चली, उस सबका निर्णय करके शुभ होगा अथवा अशुभ होगा यह सब अनुमान किया जायेगा, इसका वर्णन अब इसी को लेते हुए वर्णन किया जायगा। उसमें यह सब विदित होगा कि किस प्रकार की अपनी श्वास चले तो हम परख लें कि हम पर क्या बीतेगी अथवा अन्य लोगों पर क्या बीतेगी? यह एक स्वरविज्ञान है, इसके पहिचानने वाले पुरुष बिरले हैं, पर थोड़ा-थोड़ा ज्ञान करके उसमें हम चतुर हैं ऐसा जानकर उसका अर्थ लगाया करें और वैसा घटित न हो तो यह उसकी कुछ चालबाजी है, पर इस संबंध में जो कुछ विशेष परिचय रखते हैं उनका यह विज्ञान प्राय: करके सही उतरता है। वह शुभ क्या अशुभ होगा, जो प्रभाव बनेगा उसको वह सब समझ लेता है। यहाँ तक संक्षेप में मंडल का स्वरूप कहा गया है। अब आगे किसी मंडल की श्वास चलने के समय में क्या शुभ अथवा अशुभ होते हैं, क्या सगुन अथवा असगुन होते हैं, उसका वर्णन किया जायगा।