वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1371
From जैनकोष
अथ मंडलेषु वायो: प्रवेशनि:सरणकालमवगम्य।
उपदिशति भुवनवस्तुषु विचेष्टितं सर्वथा सर्वम्।।1371।।
प्राणायाम साधन करने से चित्त में एकाग्रता होती है, एकाग्र चित्त में ध्यान की सिद्धि होती है, अत: ध्यान के अंग में साधारणरूप से प्राणायाम भी बताया है।अब प्राणायाम के फल में स्वरज्ञान का जो एक लौकिक लाभ है उसका वर्णन यहाँ चल रहा हे। नासिका से जो स्वर निकलता है, श्वास आती जाती है उस श्वास की परीक्षा करके बहुत सी बातें आगे पीछे की निकट दूर की जान ली जाती हैं। उसी सिलसिले में यहाँ बता रहे हैं कि दूसरी प्रकार के मंडल में वायु के प्रवेश निकलने के संबंध का निश्चय करके उनके ध्यानी पुरुष इस जगत में जो पदार्थ हैं उन सबकी चेष्टावों का उपदेश करते हैं। केवल एक नाक से निकलने वाली श्वास की परीक्षा करके अनेक ध्यानी जगत के पदार्थों के संबंध बता देते हैं कि अमुक समय अमुक बात बनेगी। उसी के विस्तार में आगे वर्णन किया जा रहा है।