वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1382
From जैनकोष
पूर्णे पूर्वस्य जयो रिक्ते त्वितरस्य कथ्यते तज्ज्ञै:।
उभयोर्युद्धनिमित्ते दूतेनाशंसिते प्रश्ने।।1382।।
अब उस स्वरविज्ञान के सहारे प्रश्न समाधान के रूप में वर्णन कर रहे हैं। कभी कोई दूत आकर युद्ध के निमित्त कोई प्रश्न करे तो जिसके विजय के लिए प्रश्न किया है, उसके विजय की सूचना तब समझिये जब जिस ओर से आकर प्रश्न करे अथवा प्रश्नकर्ता का जो स्वर चलता हो, बायां अथवा दाहिना कोई स्वर हो और स्वर चलता हो वह स्वर इस बताने वाले का भी चल रहा हो तो वह इस बात का सूचक है कि पहिले जिसको पूछा गया उसकी जीत है और यदि रिक्तास्वर में वह स्वर न चलता हो, विपरीत चलता हो तो उसमें प्रतिपक्षी की विजय होगी और यदि दोनों स्वर चल रहे हों तो उसमें दोनों की ही विजय हो ऐसी उसकी सूचना है। एक स्वरविज्ञान भी एक निमित्त ज्ञान है। जैसे अन्य कुछ चीजों को देखकर कोई शुभ अशुभ बता दिया जाता है तो स्वरविज्ञान में उससे भी अधिक दृढ़ता हे कि स्वर के परिचय से दूसरों को शुभ अथवा अशुभ बताया जा सकता है।