वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1685-1686
From जैनकोष
असिपत्रवनाकीर्णे शस्त्रशूलासिसंकुले।
नरकेऽत्यंतदुर्गंधे वसासृक्कृमिकर्दमे।।1685।।
शिवाश्वव्याघ्रकंकाढ्ये मांसाशिविगान्विते।
वज्रकंटकसंकीर्णे शूलशाल्मलिदुर्गमे।।1686।।
संभूय कोष्टिकामध्ये ऊर्ध्वपादा अधोमुखा:।
तत: पतंति साक्रंदं वज्रज्वलनभूतले।।1687।।
नरक कैसे हैं, कि असिपत्र (तलवार) सरीखे हैं पत्र जिनके, ऐसे वृक्षों से तथा शूल, तलवार आदि शस्त्रों से व्याप्त हैं, अत्यंत दुर्गंध युक्त हैं, वसा (अपक्वमांस), रुधिर और कीटों से भरा हुआ कर्दम है जिनमें ऐसे हैं, तथा सियाल, श्वान, व्याघ्रादिक से तथा मांसभक्षी पक्षियों से भरे हुए हैं, तथा वज्रमय कांटों से शूल और शाल्मली वृक्षों से दुर्गम भरे हुए हैं, अर्थात् जिनमें गमन करना दु:खदायक है, ऐसे नरकों में बिलों के संपुट में उत्पन्न होकर वे नारकी जीव ऊंचे पाँव और नीचे मुख चिल्लाते हुए उन संपुटों से (उत्पत्ति स्थानों से) वज्राग्निमय पृथिवी में गिरते हैं।