वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1690
From जैनकोष
अदृष्टपूर्वमालोक्य तस्य रौद्रं भयास्पदम्।
दिश: सर्वा: समीक्षंते वराका: शरणार्थिन:।।1690।।
फिर वे नारकी जीव उस नरकभूमि को अपूर्व, रौद्र (भयानक) देखकर किसी की शरण लेने की इच्छा से चारों तरफ देखते हैं, परंतु कहीं कोई सुख का कारण नहीं दिखता और न कोई शरण ही प्रतीत होता है। वहाँ उनको जो घोर वेदना होती उसको नारकी पाते ही जाते हैं।