वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1689
From जैनकोष
दु:सहा निष्प्रतीकारा ये रोगा: संति केचन।
साकल्येनैव गात्रेषु नारकाणां भवंति ते।।1689।।
जो रोग असह्य हैं, जिनका कोई उपाय (चिकित्सा) नहीं है, ऐसे समस्त प्रकार के रोग नरकों में रहने वाले नारकी जीवों के शरीर में रोमरोम प्रति होते हैं।