वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1716
From जैनकोष
एतान्यदृष्टपूर्वाणि विलानि च कुलानि च ।
यातनाश्च महाघोरा नारकाणां मयेक्षिता: ।।1716।।
नारकियों का अपूर्व कठोर पीड़न में विलाप―फिर चाह करता है यह नारकी जीव कि नरकों की भूमि नारकियों के कुल और नारकियों की महा तीव्र वेदना, ये सब बातें मैंने अब तक नहीं देखी, ये नवीन ही बड़ी तीव्र यातनाएँ दिखने में आ रही हैं । ऐसी यातनाएँ अन्यत्र कही नहीं देखी । नरकभव में जो वेदनाएं होती हैं वैसी वेदनाएँ न पशुवों में हैं, न पक्षियों में हैं, न मनुष्यों में हैं, न देवों में हैं । किसी भी गति में ऐसी वेदनाएं नहीं हैं जैसी कि नरकगति में हैं । नरकगति की बात बहुत-बहुत सुनकर कुछ असर यों नहीं होता कि किन्ही को विश्वास ही नहीं है कि नरक हुआ करता है । यहाँ पशु और पक्षियों के दुःख का वर्णन करें तो जल्दी असर होता है लेकिन यह तो बतावो कि जिन सर्वज्ञ देव के शासन में सात तत्व नौ पदार्थ द्रव्यास्तिकाय वस्तुस्वरूप का जो वर्णन है वह वर्णन हमारे अनुभव में उतरा, उसे मैंने युक्तियों से समझा, वह यथार्थ है । ऐसे यथार्थ प्रवक्ता गणधर आदिक और मूलवक्ता सर्वज्ञदेव के शासन में वह नरक और स्वर्गों का वर्णन है, जिसकी कोई भी बात अनुभवगम्य युक्तिगम्य यथार्थ सिद्ध होती है और मेरी उस बात में जिसमें कि अनुभव और युक्ति नहीं, जो परोक्षभूत है वह बात श्रद्धालु भक्त पुरुष असत्य कभी नहीं मानते । यह नारकी जीव उस नरकभूमि में पहुंचकर ऐसा बड़ा दिल देखकर सोचता है कि ऐसा स्थान तो हमने कभी भी नहीं देखा । उनका शरीर देखकर, हुंडकसंस्थान विचित्र बेढंगा शरीर देखकर सोचता है नारकी कि ऐसा शरीर तो हमने कभी भी नहीं देखा, भयानक पशुवों जैसा शिर मुँह बना हुआ जैसा चाहे डावांडोल शरीर बना लिया । उनको ही हाथ नख शस्त्र जैसे छेदने वाले हैं, ऐसे बेढंगे शरीर हमने कभी नहीं देखे । ऐसी तीव्र वेदनाएँ जहाँ इतना आताप कि गरमी के मारे मेरूपर्वत समान लोह भी गल जाय, जहाँ इतनी ठंड की ठंड के सामने मेरूपर्वत समान लोह पिंड भी गलकर खंड-खंड होकर खिर जाय, ऐसी यातनाएं हमने कहाँ नहीं देखी । शरीर के खंड-खंड हो गए लेकिन जान नहीं जाती, वे टुकड़े फिर पारे की तरह मिल जाते हैं और फिर शरीर बन जाता है । ऐसी महान घोर यातनाएँ ये नरकों की मैंने कहीं नहीं देखी, ऐसा विचार करता है नारकी ।