वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1738
From जैनकोष
तत्र ताम्रमुखा गृध्रा लोहतुंडाश्च वायसा:।
दारयंत्येव मर्माणि चंचुभिर्नखरै: खरै:।।1738।।
नरकों में विक्रिया से घातक पक्षी बनकर कष्ट पहुंचाने की यातना―उन नरकों में ऐसे कौवा, गृद्ध आदिक पक्षी हैं । जिनकी चोंच नुकीली है, कठोर है । देखो नरकों में सिवाय नारकी जीवों के और स्थावर जीवों के कोई जीव न मिलेंगे । ये गृद्ध, कौवा आदिक जो पक्षी हैं वे पक्षी नहीं हैं, वे नारकी ही हैं जो कि विक्रिया से अपना शरीर उस रूप बना लेते हैं । उनकी चोंच ऐसी तीक्ष्ण धार वाली है कि उन नारकी जीवों के मर्म को बिगाड़ डालते हैं । उन नरकों मे निरंतर कलह मची रहा करती है । क्या जीवन है वह? जैसे किसी के घर रात दिन लड़ाई होती रहे तो पड़ौस के लोग कहते हैं कि देखो इन्होंने पूरा नरक बना रक्खा है । जहां निरंतर अशांति रहे, एक दूसरे को न सुहाये, संक्लेश परिणाम ही बना रहे, कलह प्रपंच घृणा जहाँ अपना साम्राज्य रखता है वह जीवन भी नारकी जीवन के तुल्य माना गया है । यह बात नारकियों के निरंतर रहा करती है ।