वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1823
From जैनकोष
अयमैरावणो नाम देवदंती महामना: ।
धत्ते गुणाष्टकैशश्वर्याइप्रच्छ्रियं विश्वातिशायिनीम् ।। 1823 ।।
ऐरावण देवदंती के संबंध में प्रतिबोधन―ज्ञानी पुरुष 4 प्रकार के धर्मध्यानों का ध्यान करता है―आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचय । अर्थात् कभी तो जिनेंद्र भगवान की आज्ञा को प्रधानता देकर ध्यान करते हैं, कभी रागादिक भाव कैसे दूर हों इस प्रकार की चिंतना सहित ध्यान करते हैं, कभी कर्मों के नाना फलों का विचार करके ध्यान करते हैं और संस्थान में समस्त लोक की 'रचनाओं और भूतकाल में जो हो उस सबका स्मरण कर के धर्मध्यान करते हैं । इस प्रसंग में ऊर्ध्व लोक का चिंतन किया जा रहा है । जब कोई पुण्यवान आत्मा उस सौधर्म इंद्र के पथ पर उत्पन्न होता है तो वह उपपादशय्या पर जैसे ही उत्पन्न हुआ कि वहाँ के देव उसका बड़ा समारोह मनाते हैं । उस समय वह इंद्र जो अभी-अभी उत्पन्न हुआ, उत्पन्न होते ही उन सब दृश्यों को देखकर संभ्रम करता है कि यह कौनसा नगर है, ये कौन लोग खड़े हैं, जब ऐसी मन में शंकासी करता है तो उस समय वहाँ खड़े हुए मंत्री लोग सौधर्म इंद्र के उत्पन्न होने में उसे व सबको सब कुछ परिचय कराते हैं । इस परिचय में अन्य अनेक परिचय कराते हुए डस समय ऐरावत अथवा ऐरावण हस्ती की ओर ध्यान दिला रहे हैं । हे नाथ ! यह ऐरावत नाम का देव हस्ती है । वह कोई तिर्यंच नहीं है किंतु देव ही है । वह प्राय: हस्ती का ही रूप रखता है । हम और भी अनेक रूप रखते हैं पर इस ऐरावत को हस्ती का रूप रखना अधिक पसंद है, और सौधर्मइंद्र जब-जब चलते हैं तो उनके बाह्य के रूप में वह देव हस्ती आया करता है । तो हे नाथ ! यह ऐरावत नामक देवहस्ती है जो उदार चित्त वाला है और 8 प्रकार की ऋद्धियों से युक्त है । कभी अपना शरीर बहुत छोटा बना ले और कभी बहुत बड़ा बना ले कभी अत्यंत हल्का शरीर बना ले और कभी अत्यंत वजनदार । ऐसे नाना रूपों को जो बना सके ऐसी ऋद्धियों कर के सहित है वह देवहस्ती । यह ऐसी शोभा को रख रहा है जिसकी शोभा का दूसरा हस्ती विश्व में कहीं न मिलेगा । यह आपकी सेवा में खड़ा हुआ है ।