वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2018
From जैनकोष
इत्यादिगणनातीतगुणरत्नमहार्णवम् ।
देवदेवं स्वयंबुद्धं स्मराद्यं जिनभास्करम् ।।2018।।
प्रभु की गुणरत्नमहार्णवता―प्रभु में असंख्य गुण हैं, जैसे समुद्र में अनगिनते रत्न भरे पड़े हुए हैं, इसी प्रकार इस ज्ञानपुंज में जो वीतराग सर्वज्ञ हैं उनमें अनंत गुण पड़े हुए हैं । उन अनंते गुणों का कौन बखान करे? भले ही कोई उन अनंते गुणों का निरीक्षण अनुभव कर ले, स्वयं वैसा बनकर उस रूप प्राप्ति कर ले, पर कोई चाहे यह कि हम उन अनंत गुणों का नाम पूरा बतायें उनका वर्णन करें, उनका मिलान बताये यह हम आप लोगों के शक्य नहीं है । सो गणनातीत गुणरत्नों के जो महान समुद्र हैं ऐसे प्रभु को यह ज्ञानी अपने उपयोग में बसा रहा है, ऐसे देवदेव स्वयंबुद्ध आद्य जिनसूर्य का स्मरण करो, स्वयं बुद्ध हैं प्रभु । आखिर ज्ञान रूप ही तो है यह आत्मा । ज्ञानस्वरूप आत्मा स्वयं अपने आप अपने ही ज्ञान के द्वारा ज्ञात हो जाय और फिर उस ही ज्ञान की स्थिरता बनाये, यह कोई स्वयं करे अर्थात् किसी गुरु आदिक के उपदेश बिना भी करे तो इसमें आश्चर्य क्या है? तीर्थंकरों को स्वयं बुद्ध कहा ही है, ऐसे ये आदिम तीर्थकर हैं । लोग कहते आदम बाबा । तो आदिम शब्द बिगड़कर आदम रह गया । वह आदिम कौन हुए? ऋषभदेव, कैलाशपति । ऋषभदेव का कैलाश पर्वत पर निवास था, कैलाश से ही निर्वाण प्राप्त किया । तो कैलाश पर्वत पर कुछ बसने के कारण वे कैलाशपति हैं । वे ऋषभदेव ब्रह्मा ही तो थे । जब भोगभूमि नष्ट हुई, कर्मभूमि प्रारंभ हुई उस समय तो सब नया युग था, नया संसार था, लोगों को कुछ पता न था । कैसे रहना, कैसे खाना, कैसे जीना, अनेक भय भी सता रहे थे तो उस समय ऋषभदेव ने सबको मार्ग बताया, इस कारण भी वे विधाता हैं और फिर सकल संन्यास करके मोक्षमार्ग की विधि बतायी है इसलिये वे विधाता हैं । ऐसे आदिनाथ जिनसूर्य को है आत्मन् ! स्मरण करो ।
स्वयं की प्रभुता की आशिक झांकी होने पर प्रभु की प्रभुता का अंदाजा―भैया ! ये सब यत्न हैं अपने आपको निष्कषाय और विशुद्ध बनाने के लिए । जहाँ भ्रम का कोई आवरण न रहे, भ्रमरहित अपने आपके स्वरूप का दर्शन करने के लिए यह सब प्रभुस्तवन चल रहा है । प्रभु की प्रभुता भी तभी जानी जा सकती है जब अपने अंतरंग में उस प्रभुता का कुछ प्रयोग करें । प्रभुता मुझ में है, उस प्रभुता का आंशिकरूप से अनुभवन हो तो प्रभु की प्रभुता जानी जा सकती है कि क्या वैभव है प्रभु का? विषयों में रत रहने वाले लोग उस निर्विषय निर्विकल्प ज्ञानानंद प्रभु के वैभव को क्या जान सकते हैं? नहीं जान सकते ।
रूपस्थधर्म्यध्यानवर्णन प्रकरण 39
विषयवासित चित्त में प्रभुता की परख की अपात्रतापर एक दृष्टांत―एक छोटी सी कथा है कि एक मालिन की लड़की और एक ढीमर की लड़की, वे दोनों सहेलियां थीं । मालिन की लड़की का काम था फूलों का हार बनाना और ढीमर की लड़की का काम था मछली पकड़कर बेचना । ढीमर की लड़की तो एक गाँव में ब्याही गई और मालिन की लड़की एक शहर में । एक दिन ढीमर की लड़की उसी शहर में मछली बेचने ले गई जहाँ पर कि उसकी सहेली रहती थी । मछलियां बेचते-बेचते शाम हो गई । सोचा कि आज अपनी सहेली के घर रह जायेंगी जो कि यहीं पर रहती है । सो मछलियों का टोकना लेकर चली गई अपनी सहेली के घर । सहेली ने खिलाया पिलाया । सोने के लिए बड़ा अच्छा बिस्तर बिछाया, कुछ फूलों की पंखुड़ियां भी डाल दी । वह ढीमर की लड़की लेटी तो उस बिस्तर पर, पर उसे उस पर नींद न आये, करवटें बदले । तो मालिन की लड़की पूछती है―क्यों सहेली क्या बात है? नींद क्यों नहीं आ रही है? तो ढीमर की लड़की कहती है कि यह तुमने क्या कर रखा है कि इस बिस्तर पर फूलो की पंखुड़ियां डाल दी हैं, इनकी गंध के मारे नींद नहीं आ रही है । तो मालिन की लड़की बोली―अरे ये पंखुड़ियां तो बड़े-बड़े राजा महाराजावों के बिस्तर में पड़ती हैं । ढीमर की लड़की कहती है―नहीं नहीं इन्हें हटावो । वह बेचारी उन पंखुड़ियों को हटा लेती है । इतने पर भी उसे नींद नहीं आती है । फिर मालिन की लड़की पूछती है―सहेली अब क्यों नींद नहीं आ रही है? तो ढीमर की लड़की कहती है―अरे नींद कहाँ से आये । वह जो हमारा मछलियों का टोकना रखा है ना, उसे उठाकर लावो, उसमें पानी के कुछ छींटे मारकर इस बिस्तर के सिरहाने धरो तब नींद आयगी । उसने वैसा ही किया तब बेचारी ढीमर की लड़की को नींद आयी । तो मछलियों की गंध में रहने वाली ढीमरनी को जैसे पुष्पों की सेज पर नींद नहीं आती इसी प्रकार विषयों के दुर्गंध में बसने वाले संसारी जीवों को प्रभु के ज्ञानानंद का क्या परिचय? पहिले अपना उपयोग कुछ उस रूप ढालना होगा तब हम प्रभु के गुणो का परिज्ञान कर सकेंगे । तो यों प्रयोग करें और प्रभु का परिचय करें और प्रभु को अपने चित्त में बसाये जिससे पवित्रता बढ़ेगी और हमारा जन्म सफल होगा ।