वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2109
From जैनकोष
देवराज्यं समासाद्य यत्सुखं कल्पवासिनाम् ।
निर्विशंतितोऽनंतं सौख्यं कल्पातिवर्त्तिन: ।।2109।।
कल्पवासी देवों, इंद्रों के सुख से अनंत गुणा कल्पातीत देवों का सुख―सोलह स्वर्गों के इंद्रों देवों को भी बहुत सुख है, स्वाभाविक विक्रियाऋद्धि है, जहाँ चाहे वे क्षणभर में ही पहुंच जाये । कितने ही द्वीप समुद्रों को पार कर के पहुंच जायें, किसी भी वन में क्रीड़ा करें, जिनके शरीर में पसीना नहीं, जिनके शरीर में मल रुधिर आदिक रोग नहीं, जिनको आजीविका की कोई चिंता नहीं, तो समझ लीजिए कि उनको भी कितना सुख है, लेकिन सभी सोलह स्वर्गों के समस्त देवों का जो भी सुख है वह भी मिला दिया जाय तो भी कल्पातीत देवों के सुख की तुलना नहीं हो सकती । कल्पातीत देवों का सुख तो कल्पना में भी नहीं आ सकता । धर्मध्यान ज्ञानचर्चा के अनुराग में ऐसे कल्पातीत देवों में धर्मध्यानी पुरुष का जन्म होता है ।