वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2125
From जैनकोष
छद्यस्पयोगिनामाद्ये द्वे तु शुक्ले प्रकीर्त्तिते ।
द्वे त्वंत्ये क्षीणदोषाणां केवलज्ञानचक्षुषाम् ।।2125।।
आद्य दो शुक्लध्यान और उनके स्वामी―शुक्लध्यान ऐसी स्थिति का नाम है कि जहाँ मन चलायमान नहीं, मन अंतर्मुख है, विकल्पों का विलास नहीं, ऐसे विशुद्ध अत्यंत एकाग्र उपयोग का नाम शुक्लध्यान है । यह शुक्लध्यान श्रेणी में रहने वाले मुनीश्वरों के होता है । शुक्लध्यान के चार भेद कहे हैं । जिनका नाम है-पृथक्त्ववितर्कवीचार एकत्ववितर्कअवीचार, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति, त्युपरतक्रियानिवृत्ति । इनमें से आदि के दो शुक्लध्यान छद्मस्थयोगियों के होता है । केवलज्ञान से पहिले की श्रेणियों के दो शुक्लध्यान होते हैं । पृथक्त्ववितर्कवीचार में क्या होता है इसको आगे स्पष्ट करेंगे, पर साधारणतया ऐसा भाव समझलें कि जहाँ राग की प्रेरणा के बिना तो ध्यान हो रहा है, पर जिस किसी भी पदार्थ का ध्यान कर रहे हैं उस ही में नहीं ठहर पाते । बदल बदलकर पदार्थो का ध्यान इसमें हुआ करता है, और एकत्ववितर्कअवीचार का अर्थ है कि जिस पदार्थ में ध्यान जमा उस ही का ध्यान स्थिरता से रहता है और उस ही स्थिति के बाद एकदम केवलज्ञान हो जाता है । पृथक्त्ववितर्कवीचार 8वें गुणस्थान से 10वें गुणस्थान तक और थोड़े समय को 12 वें गुणस्थान में होता है । इसके बाद जब एक ही पदार्थ को ज्ञेय रखकर ध्यान की एकाग्रता होती है तब वह भी सकल प्रत्यक्ष के द्वारा ज्ञात रहेगा और सारे विश्व के एक पदार्थ भी ज्ञात हो जायेंगे, ऐसा केवलज्ञान प्रकट होता है ।
अंतिम दो शुक्लध्यान के स्वामी―छद्मस्थयोगियों के आदि के दो शुक्लध्यान होते हैं, और जो पुरुष क्षीण दोष हैं, रागादिक जिनके दूर हो चुके हैं, केवल ज्ञाननेत्र प्रकट हो गया है उनमें अंतिम दो शुक्लध्यान होते हैं । यद्यपि भगवान के ध्यान की कोई आवश्यकता नहीं है तथापि ध्यान का फल है कर्मों का निर्जरा होना, और यह काम वहाँ भी देखा जाता है, जो कुछ कर्म शेष रहे हैं उनको निर्जरा होती है अतएव ध्यान शब्द से कह देते है―पर जो न संज्ञी हैं, न असंज्ञी हैं, केवलज्ञान के द्वारा समस्त विश्व को जानते हैं उनका मन भी कहां है? मन को अब किस तरफ रोकने का वे काम करें? एक ओर चित्त के निरोध का नाम ध्यान कहा है । तो ध्यान का लक्षण घटित न होने पर भी ध्यान का काम देखा जाता है, फल देखा जाता है, इससे केवली भगवान के भी दो ध्यान कहे गए हैं ।