वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2136
From जैनकोष
अर्थादर्थं वच: शब्दं योगाद्योगं समाश्रयेत् ।
पर्यायादपि पर्यायं द्रव्याणोश्चिंतयेदरणुम् ।।2136।।
संक्रांति में अबुद्धिपूर्वक समाश्रयण―एक पदार्थ से दूसरे पदार्थपर ज्ञान पहुंचे । एक शब्द से दूसरे शब्द में ध्यान जमाना, एक योग से दूसरे योग में रहकर ध्यान बनाना, एक पर्याय से हटकर दूसरी पर्याय का ध्यान बनाना और किसी भी द्रव्य से हटकर किसी भी अणु का ध्यान जमाना, इस प्रकार द्रव्य से द्रव्यांतर, पर्याय से पर्यायांतर, अर्थ से अर्थांतर, वचनों से वचनांतर, योग से योगांतर, इतने परिवर्तन उनके सहज होते रहते हैं । बे कुछ थक जाने के कारण उसे बदलते हों, यह बात नहीं है । जैसे यहाँ हम आप किसी चीज का ज्ञान करने लगें तो थक जाते हैं, कोई कठिन तत्व की बात सुनने लगे दो एक जनों से तो वे थक कर के कोई एक ऐसी बात पूछ देंगे कि वह विषय ही बदल जाय, और हमारे मन की थकान मिट जाय, ऐसी थकान शुक्लध्यानी के नहीं होती है, जिस थकान के कारण वह तत्व चिंतन में पदार्थ को बदले किंतु वहाँ एक ज्ञप्ति की अपूर्ण अवस्था होने के कारण यह परिवर्तन चलता है ।